रक्षा बंधन कब और क्यों माना जाता है?2022-2023
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- August 10, 2022
- ट्रेडिंग देश धार्मिक बाँदा की खबर लेटेस्ट न्यूज़
रक्षाबंधन का त्यौहार हिंदू धर्म का बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है| यह त्यौहार सिर्फ हिंदू धर्म के ही नहीं अपितु अन्य धर्म के लोग भी मनाते हैं| रक्षाबंधन को हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रावण नक्षत्र में ही मनाया जाता है |यह त्यौहार हर साल भारतवर्ष के अलावा अन्य देशों में भी मनाया जाता है|
क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत किसने और क्यों की? अगर नहीं, तो हम आपको बताते हैं कि आखिर रक्षाबंधन की शुरुआत किसने और क्यों की |
रक्षाबंधन की शुरुआत को लेकर वेदों में दो कथाओं का उल्लेख प्रमुख रूप से मिलता है . एक राजा बलि की कथा और दूसरी इंद्रदेव की कथा|
प्रथम कथा– राजा इंद्र की कथा
इस कथा का वर्णन भविष्य पुराण में है| एक बार राक्षसों और देवों के मध्य युद्ध छिड़ गया| यह युद्ध बहुत ही भयावह था |यह युद्ध लगातार 12 वर्षों तक चला | इस युद्ध में दानवो ने समस्त देवों को पराजित कर दिया और अंत में दानवो के राजा ने देवों के राजा इंद्र को भी विभाजित कर दिया | पराजय के पश्चात देवराज इंद्र सभी देवताओं के साथ अमरावती चले गए|
इंद्रा के पराजित होने के बाद दैत्यराज ने तीनों लोको पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया और दैत्यराज ने घोषणा करवाई की अब इंद्रदेव सभा में उपस्थित ना हो तथा कोई भी देवता या मनुष्य यज्ञ कार्य नहीं करेगा, जिसको भी पूजा करनी है वह मेरी पूजा करेगा| इस घोषणा के बाद यज्ञ ,पूजा -पाठ ,उत्सव आदि बंद हो गए जिससे देवताओं की शक्तियां कम होने लगी |
तब देवराज इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और कहा,” गुरुवर ऐसी परिस्थिति में मैं क्या करूं ना तो मैं और भाग सकता हूं और ना ही मैं युद्ध कर सकता हूं आप ही मुझे कोई उपाय बताइए|” गुरु बृहस्पति ने इनकी वेदना को दूर करने के लिए रक्षा विधान करने को कहा| पास में उपस्थित इंद्र की पत्नी शची ने सब सुन लिया उन्होंने गुरु बृहस्पति की आज्ञा से रक्षा सूत्र बनाने का प्रण लिया | श्रावण पूर्णिमा को प्रातः काल येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।|”इस मंत्रसे रक्षा विधान का कार्य पूर्ण किया गया| इंद्राणी (शची ) ने स्वस्तिवाचन कराकर रक्षा का तंतु (सूत्र) तैयार किया और इन्द्र को दिया| इंद्र ने रक्षा सूत्र बृहस्पति से बंधवाया और राक्षसों से युद्ध करने चले गए | इस बार इस युद्ध में देवराज इन्द्र की विजय हुई और दानव भाग खड़े हुए |इस प्रकार रक्षाबंधन में रक्षा बांधने की शुरुआत यहीं से हुई|
दूसरी कथा– राजा बलि और माता लक्ष्मी की कथा
इस कथा के अनुसार दैत्यों के राजा बलि ने एक बार यज्ञ करने की ठानी| उन्होंने जब 110 यज्ञ पूरे कर लिए तो देवराज इंद्र घबराने लगे |राजा इंद्र का डर इसलिए बढ़ने लगा कि कहीं राजा बलि अपने यज्ञो के फल से इतने शक्तिशाली ना हो जाए कि वह स्वर्ग लोक में अपना अधिकार जमा लें | इंद्र और सभी देवता भगवान विष्णु जी के पास अपनी समस्या लेकर गए| तब भगवान विष्णु ने धरती में वामन रूप लिया और राजा बलि के पास गए|
विष्णु जी के वामन रूप ने राजा बलि से भिक्षा मांगी |राजा बलि ने भिक्षा के रूप में तीन पग के बराबर जमीन भिक्षा के रूप में देने का वचन दे दिया |तब भगवान विष्णु ने अपना वामन रूप का आकार बढ़ाया और पहले पग में पूरे स्वर्ग लोक को ले लिया| दूसरे पग में भगवान विष्णु के वामन रूप ने धरती लोक को ले लिया| जब भगवान विष्णु अपना तीसरा पग बढ़ाने लगे तब राजा बलि यह देख कर परेशान हो लगे, वह यह समझ नहीं पा रहे थे की तीसरा पग वह कहां रखेंगे| तब राजा बलि ने अपना सर आगे किया और भगवान विष्णु ने अपना तीसरा अगला पग राजा बलि के सर में रख दिया जिससे राजा बलि रसातल में धस गए | इसप्रकार राजा बलि से स्वर्गलोक और भूलोक चीन गया |
रसातल में रहते हुए राजा बलि ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की| राजा बलि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एक वरदान मांगने को कहा| राजा बलि ने वरदान के रूप में भगवान विष्णु को अपने पास हमेशा के लिए रहने के लिए मना लिया| इस प्रकार भगवान विष्णु रसातल के द्वारपाल बन गए और वहीं निवास करने लगे|
क्षीर सागर से विष्णु जी के चले जाने से माता लक्ष्मी व्याकुल हो उठी| वह इस दुविधा में पड़ गई कि अब वह भगवान विष्णु को वापस रसातल से क्षीरसागर कैसे लेकर आएँगी | फिर माता लक्ष्मी ने इसका उपाय नारद मुनि से पूछा| नारद मुनि ने इसका उपाय रक्षाबंधन बताया | श्रावण पूर्णिमा को माता लक्ष्मी रसातल में गई और राजा बलि के हाथ में रक्षा बांधकर उन्हें अपना भाई बना लिया |
भाई बनाने के बाद माता लक्ष्मी ने राजा बलि से उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांगा |राजा बलि ने उपहार के रूप में भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी को दे दिया| इस प्रकार माता लक्ष्मी ने एक रक्षा सुत्र से भगवान विष्णु को रसातल से वापस क्षीर सागर में ले आई |
तो दोस्तों यह थी रक्षाबंधन मनाने की वजह | हर श्रावण मास की पूर्णिमा को हर बहन अपने भाई का तिलक करके उसके हाथ में रक्षा सूत्र बांधती है और भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा करने का वचन देता है |
ऐसे ही रोचक जानकारी के लिए बने रहिये हमारे चैनल Jan Sathi Media House के साथ|
धन्यवाद
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