कैसे बना मूषक गणेश भगवान की सवारी?……….
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- rohit singh
- September 8, 2022
- धार्मिक लेटेस्ट न्यूज़
प्रिये पाठको हर साल भारत तथा अन्य देशो में गणेश चतुर्थी बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है| गणेश चतुर्थी हर साल भद्र मास की शुक्ल पछ की चतुर्थ तिथि को मनाया जाता है |इस दिन लोग अपने घर में गणेश भगवान् की मूर्ति की स्थापना करते है और उनकी नित्य पूजा करते है | गणेश पर्व पुरे १० दिन बहुत ही धूमधाम तथा सुख सुविधाओं से मनाया जाता | गणेश पर्व के ९ दिन घर में गणेश जी वास करते है तथा १० वे दिन भक्तगण घर में स्थापित गणेश प्रतिमा का विषर्जन करते है इन 9 दिनों तक घर का मौहाल बहुत ही पवित्र होता है तथा भगवान् आपकी मनोकामनाओ को पूर्ण करते है|
जिस दिन गणेश जी की मूर्ति का विषर्जन करते है उस दिन को अन्नत चतुर्दस कहते है |
गणेश जी माता पार्वती तथा भगवान् शिव के २ पुत्रो में से एक है| पुराणों के अनुसार गणेश भगवान का जनम भद्र मास की शुक्ल पछ की चतुर्थ तिथि को हुआ था इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जता है | गणेश भगवान् बुद्धि के देवता है | गणेश भगवान् की आराधना करने से अनेको पुण्य प्राप्त होते है| गणेश भगवान् जी की सवारी कोई और नहीं छोटे से मूषक महाराज है| मित्रो क्या आप जानते है आखिर गणेश भगवान् की सवारी मूषक कैसे बने अगर नहीं तो आईये जानते है ..
पुराणों में भगवान् गणेश की सवारी “मूषक ” के बारे में २ कथाये विख्यात है –
कथा 1 -बहुत समय पहले एक राक्षस था जिसका नाम था गजमुखासुर | गजमुखासुर भगवान् शिव का भक्त था |एक बार गजमुखासुर ने कई वर्षो तक भगवान् शिव की घोर तपस्या की | उसकी इस तपस्या से खुश होकर भगवन शिव ने उसे दर्शन दिए और उसकी तपस्या के फल के स्वरूप में वरदान मांगने को कहा| गजमुखासुर ने भगवान् शिव से अमरत्व माँगा, परन्तु भगवान् शिव ने उससे कहा जिसका जनम हुआ है उससे मरना अवश्य पड़ेगा इसलिए अमरत्व छोड़कर कुछ और मांगों|
तब गजमुखासुर ने भगवान् से वरदान के रूप में यह वर माँगा की वह न तो किसी देवता से ,न ही किसी नर से, न किसी दानव से तथा न ही किसी जानवर से कभी पराजित हो | भगवान् शिव ने तथास्तु बोलकर उसे वरदान दिया और कहा की तुम इन शक्तियो का कभी भी दुरूपयोग न करना इनका उपयोग सदैव भलाई के काम में लगाना | इतना कहके भगवान् शिव वहा से अन्तर्ध्यान हो गए |
वरदान पाकर गजमुखासुर के अंदर अहंकार आ गया | उसने इन शक्तियो की वजह से पृथ्वी लोक में ही नहीं अपितु देव लोक में भी अत्याचार शुरू कर दिया | जब उसने कई देवताओ को मार दिया तब देवराज इंद्र भगवान् शिव के पास गए और कहा , प्रभु आप ने ही गजमुखासुर को वरदान देकर उसे इतना शक्तिशाली बना दिया की हम भी उसे हरा नहीं सकते अब आप ही हम देवताओ और मानव जाति की रक्षा करे | भगवान् शिव को अपने दिए वरदान पर पछतावा होने लगा , उन्होंने तुरंत गणेश जी को बुलाया और कहा , गणेश जाओ तुम उस गजमुखासुर से इन देताओ तथा मानव जाति की रक्षा करो |
तब गणेश भगवान् , गजमुखासुर से लड़ने केलिए गए | उनदोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ | भगवान् गणेश ने गजमुखासुर को याद दिलाया की वह उसे मार सकते है क्युकि उनका शरीर नर का है और मुख हाथी का , वह तो न ही पूर्ण रूप से नर है न ही पूर्ण रूप से जानवर | यह सुनकर गजमुखासुर चूहे का रूप लेकर भागने लगा परन्तु भगवन गणेश ने उसे पकड़ लिया | तब गजमुखासुर ने भगवान् गणेश से माफ़ी मांगी और कभी भी पाप न करने का अस्वासन दिया | गजमुखासुर ने भगवान् गणेश से मूषक के रूप में उनकी सवारी बनकर सेवा करने का आग्रह किया | भगवान् गणेश ने गजमुखासुर की आग्रह स्वीकार कर ली और तभी से मूषक, भगवन गणेश की सवारी बन गए |
कथा -२ देवराज इंद्र के दरबार में क्रौंच नाम का गंदर्भ था | वह बहुत ही चंचल था |
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एक बार इंद्र सभा में बैठे थे तभी क्रौंच अपने स्वभाव के वजह से सभा में विघन डालने लगा जिससे देवराज इंद्र क्रोधित हो उठे और उसे श्राप देकर चूहा बनाकर धरती लोक में भेज दिया | धरती लोक में वह सीधे ऋषि पराशर के आश्रम में आ गिरा | वहां इसने अत्यंत उत्पात मचाया |जब कोई भी इस चूहे को पकड़ नहीं पाया तब ऋषि पराशर भगवान् गणेश के पास गए और उस चूहे से निजात दिलाने के लिए कहा |भगवान् गणेश ने पाश फेखा और उस चूहे को पकड़ लिए | जैसे ही वह पकड़ा गया उसने गणेश भगवान् से माफ़ी मांगी और उनका सेवक बनने के लिए निवेदन किया | गणेश जी ने उसे माफ़ करते हुए उसे अपनी सवारी बना ली |
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